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चिकित्सकीय भाषा में जुर्म से कम नहीं ओपन सर्जरी
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एंडोगायन कॉन्क्लेव 2019
इंदौर। डॉक्टर्स को लेप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी की ट्रेनिंग देने और गायनिक बीमारियों में लेप्रोस्कोपी के जरिए सर्जरीस को बढ़ावा देने के लिए शहर में शनिवार को एंडोगायन कॉन्क्लेव 2019 का आगाज हुआ। पहले दिन मदरहुड हॉस्पिटल में 22 गायनिक सर्जरीस लेप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी के जरिए की गई, जिसका लाइव टेलीकास्ट ब्रिलिएंट कवेंशन सेंटर में 400 डेलीगेट्स के लिए किया गया।
कॉन्फ्रेंस की कन्वेनर डॉ आशा बक्शी ने बताया कि इनमे से कुछ सर्जरीस 3D फॉर्मेट में की गई थी, जिन्हे डेलीगेट्स ने चश्मे लगाकर देखा। डॉ बक्शी कहती है कि लोग लेप्रोस्कोपी और हिस्प्रोस्कोपी में कंफ्यूज होते हैं। उन्हें हम बताना चाहते हैं कि लेप्रोस्कोपी दूरबीन के जरिए की जाने वाली पेट की सर्जरी को कहते हैं जबकि हिस्प्रोस्कोपी में गर्भाशय की बीमारियों का इलाज दूरबीन के जरिए किया जाता है।
कॉन्फ्रेंस की ऑर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ शेफाली जैन ने बताया कि 3D लेप्रोस्कोपी तकनीक एक क्रांति की तरह है। इसके जरिए सर्जन को मानव शरीर की एक-एक वेसल्स साफ नज़रआती है। आज भी शहर के सरकारी अस्पतालों में लेप्रोस्कोपी की तकनीक को पूरी तरह नहीं अपनाया है पर प्राइवेट अस्पतालों में 95% तक इस तकनीक को अपना लिया गया है।
यह तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि आज इसके जरिए शरीर के अंदर ही बिना टांकें लगाए ब्लड वेसल्स को सील कर दिया जाता है। लेप्रोस्कोपी के सफल, आसान, सुरक्षित और सस्ता होने के कारण ही चिकित्सकीय भाषा में अब ओपन सर्जरीस को किसी जुर्म से कम नहीं माना जाता।
कई कठिन केस लेप्रोस्कोपी की मदद से हुए ठीक
ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ धवल बक्शी और डॉ सुमित्रा यादव ने बताया कि पहले दिन लेप्रोस्कोपी की मदद से 22 गायनिक सर्जरीस की गई, जिसमे से21 मरीजों की बीमारी को दूर कर दिया गया। सिर्फ एक सर्जरी में 46 वर्षीय महिला के गर्भाशय में जब दूरबीन डाली गई तो पता लगा कि उसमे कैंसर बुरी तरह फ़ैल चूका है इसलिए आगे की प्रक्रिया को रोक दिया गया। 18 साल की एक लड़की के गर्भाशय से गठान को लेप्रोस्कोपी की मदद से निकला गया।
एंडोमेट्रोसिस की दो सबसे जटिल सर्जरी डॉ संजय पटेल ने की। पहले केस में एक महिला की फर्टिलिटी की उम्र निकल जाने के बाद उसके गर्भाशय में कुछ समस्या आ गई थी, जिसका निदान किया गया। दूसरे केस में एक महिला का गर्भाशय दो हिस्सों में बट गया था, जिस कारण उसे गर्भधारण करने में समस्या आ रही थी। इन दोनों ही मामलों में लेप्रोस्कोपीक सर्जरी से सफलतापूर्वक समस्या का निदान किया गया।
यह लेप्रोस्कोपी का ज़माना है
सर्जरी के लिए अहमदाबाद से इंदौर आए डॉ संजय पटेल ने कहा कि आज का समय लेप्रोस्कोपी का है। इसमें कम खतरा होता है और मरीज भी जल्दी रिकवर होकर घर पहुंच जाता है। समय के साथ देश में लेप्रोस्कोपी करने में एक्सपर्ट सर्जन्स भी बढ़ते जा रहे हैं।
यही कारण है कि चिकित्सकीय भाषा में आजकल ओपन सर्जरी को किसी जुर्म से कम नहीं माना जाता, जिसमें मरीज की ज़िंदगी दांव पर लगाई जाती है। मरीज को खुद अब लेप्रोस्कोपी को चुनना चहिए। बस इस बात का ध्यान रखें कि एक अच्छे लेप्रोस्कोपिक सर्जन को कम से कम सात साल का अनुभव होना जरुरी है।
महिलाओं के लिए वरदान है लेप्रोस्कोपी
दुबई से आई कविता त्रेहान, 107 वर्षीय महिला की लेप्रोस्कोपी के जरिए प्रोलैप सर्जरी कर बच्चेदानी का मुंह ऊपर की ओर से बंद किया। वे कहती है कि साथी डॉक्टर्स, जो लेप्रोस्कोपी नहीं करते वे मरीजों को यह तक कहकर डरते हैं कि गाड़ी का इंजिन सिर्फ एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर ठीक नहीं किया जा सकता, उसके लिए पूरा बोनट खोलना जरुरी होता है।
यह पूरी तरह गलत है इसलिए मैं मरीजों से कहना चाहती हू कि वे इस बारे में जागरूकता लाए और खुद लेप्रोस्कोपी का विकल्प चुने। यह महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं क्योकि इसमें बिना बड़ा चीरा लगाए बड़ी से बड़ी गायनिक बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
गर्भपात रोकने में कारगर लेप्रोस्कोपी
जयपुर से आई डॉ सुशीला सैनी कहती है कि पहले महिलाओं में बार-बार गर्भपात होने पर प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय के मुख पर नीचे से टांके लगा दिए जाते थे, जो ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं होते थे। आजकल लेप्रोस्कोपी के जरिए सुरक्षित तरीके से यही टांके गर्भाशय में ऊपर की ओर लगाए जाने लगे हैं, जिससे गर्भपात रोकने में 100% सफलता मिलने लगी है।
यही कारण है कि कॉन्फ्रेंस में सभी डॉक्टर्स ने इस तरह के मामलों में लेप्रोस्कोपी करने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं अब हम लेप्रोस्कोपी की मदद से 6 से 6.5 किलो तक के फ्रेब्रॉइड को बिना चीरा लगाए निकाल सकते हैं।
देश में आज भी 70% सर्जरीस ओपन हो रही है
मुंबई से आए डॉ अनुराग भाटे ने बताया कि इतने सरे फायदों के बावजूद आज भी देश में 70% सर्जरीस लेप्रोस्कोपी के बजाए ओपन की जा रही है। यह किसी जुर्म की तरह है। यह बहुत जरुरी है कि डॉक्टर्स और अस्पताल खुद को अपग्रेड करे और मरीज लेप्रोस्कोपी को लेकर जागरूक बने।
बच्चियों के लिए सबसे बेहतर विकल्प
अक्सर ऑपरेशन के बड़े निशान के कारण बच्चियों की शादी में दिक्कत आती है इसलिए छोटी बच्चियों में सर्जरी करने के लिए लेप्रोस्कोपी ही बेस्ट ऑप्शन है। मुंबई से आए डॉ नितिन शाह कहते हैं कि इसमें बिना किसी बड़े चीरे और निशान के बीमारी ठीक की जा सकती है। मैंने खुद एक सात साल की बच्ची की गठान लेप्रोस्कोपी के जरिए निकाली थी। अभिभावकों को बच्चियों में पेट दर्द की शिकायत को अनदेखा नहीं करना चाहिए और सर्जरी की स्थिति में लेप्रोस्कोपी को ही चुनना चाहिए।